सपनों के शहर मुंबई में हर रोज़ सैकड़ों लोग आँखों में सपने लिए आते हैं। आसमान की बुलंदियों पर अपना नाम लिखने की चाहत दिल में लेकर आने वाले इन अंजान मुसाफिरों का मुंबई खुले दिल से स्वागत करती है। भले ही यहाँ आनेवाले लोगों को आते ही शहर में सफलता न मिले, रात फुटपाथ पर सोकर गुजारनी पड़े, लेकिन एक बार जिसने मुबंई की इस अग्निपरीक्षा को पार कर लिया, फिर वो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता। दौड़ता भागता यह शहर इंसान को इतना मज़बूत बना देता है कि जिंदगी कि हर मुश्किल को वह हँसते-हँसते पार कर जाता है और सफलता उसे अपने बाँहों में थाम लेती है।

मुंबई से 90 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर पालघर में रहनेवाले शार्दुल ठाकुर का जन्म 16 अक्टूबर 1991 को हुआ। उनका बस एक ही सोच और सपना था कि वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में शुमार हों। मगर पालघर में क्रिकेट का वैसा एक्सपोजर नहीं था, इसलिए उन्हें रोज मुंबई का सफर करना होता था। शार्दुल हर दिन पालघर स्टेशन से तड़के 3.30 बजे जो ट्रेन खुलती थी, उसके पकड़ा करते। 13 साल की उम्र में करीब 90 किलोमीटर के थकाऊ सफर के बाद वह मुंबई के चर्चगेट स्टेशन पर उतरते। उनका एकमात्र मकसद था, क्रिकेट खेलना। जितना हो सके, उतना खेलना। जल्द ही वे मुंबई के घरेलु लेवल क्रिकेट में सबसे अच्छे तेज गेंदबाज़ माने जाने लगे।

बचपन से ही अपने खेल में माहिर रहे शार्दुल एक बार स्कूल क्रिकेट में एक ओवर में 6 गेंदों में 6 छक्के लगाए थे। किशोरावस्था में उनका रवैया बहुत ही अड़ियल था, यदि उन्हें कोई कुछ सलाह देता तो वह उसे दरकिनार कर देते। शार्दुल कुछ ज्यादा वजनी थे जिसके कारण उन्हें लोगों से ताने भी सुनने पड़ते थे। तब वह 83 किलो के हुआ करता था। खुद सचिन ने उनसे कहा कि क्रिकेट को लेकर गंभीर हो तो वजन घटाओ। इसके बाद शार्दुल 13 किलो वजन घटाने में सफल रहे। वे अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए सबकी सलाह सुनते, उसे नोट करते और अमल करते। शार्दुल मीडियम पेसर हैं और स्विंग उनका हथियार है।

प्रारंभ में उनका चुनाव अंडर-19 के लिए नहीं हो पाया तो उसके बाद उन्होंने काफी मेहनत की और अगले ही वर्ष उनका चयन संभव हो पाया। इसके साथ ही साथ वे ग्रेजुएशन की भी पढ़ाई कर रहे थे।

“जब कभी भी मैं ऊहापोह की स्थिति में रहता हूँ तो उसका सामना मैं और अधिक प्रैक्टिस करके करता हूँ”

उन्होंने एक और राज़ उजागर करते हुए बताया कि जब भी उन्हें किसी सलाह की आवश्यकता होती है वे आज भी अपने स्कूल के कोच के पास जाते हैं।

“मैंने काफी क्रिकेट उनके साथ डिस्कस किया है। उनकी सबसे अच्छी बात यह है कि जब कभी भी मैं कोई असफलता की बात लेकर उनके पास गया तो उन्होंने तुरंत ही उससे बाहर निकलने का उपाय सुझाया”।

नवंबर 2012 में शार्दुल ने जयपुर में राजस्थान क्रिकेट टीम के खिलाफ अपना प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेला। मगर वह अपने करियर की अच्छी शुरुआत नहीं कर पाए क्योंकि उन्होंने अपने पहले चार मैच में 82.0 की औसत से चार विकेट लिए थे। संघर्षों और कठिन प्रयासों के बावजूद वे राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की नजरों में जगह नहीं बना पाए क्योंकि वहाँ कई गेंदबाज कतार में थे।

इन सब के बावजूद भी 2015-16 में रणजी ट्रॉफी फाइनल में, उन्होंने सौराष्ट्र क्रिकेट टीम के खिलाफ 8 विकेट लिए और मुंबई क्रिकेट टीम को अपनी 41वीं रणजी ट्राफी का खिताब दिलवाया।

काफी इंतजार के बाद आखिरकार वह वक्त आ गया जब वह भारतीय टेस्ट दल का हिस्सा बने। उन्हें वेस्टइंडीज टेस्ट दौरे के 16 सदस्यीय टीम  में नामित किया गया। वे टीम के गेंदबाज़ रहे और कई बेहतरीन बल्लेबाजों के सामने उन्हें गेंदबाजी का अवसर प्राप्त हुआ। IPL खेल में उनकी शुरुआत किंग्स lX पंजाब से हुई। 2017 में उन्हें राईजिंग पुणे सुपरजाइंटस ने अधिगृहित किया। 2018 की IPL नीलामी में चेन्नई सुपर किंग के लिए उन्हें लिया गया।

दक्षिण अफ्रीका के अपने दौरे से लौटने पर शार्दुल एमिरेट्स की फ्लाईट से उतर कर घर जाने के लिए अंधेरी से लोकल ट्रेन में सवार हुए, जैसे वे साधारणतया किया करते थे। मगर इस बार वह कोई अपनी स्थिति दर्ज करने के लिए संघर्षरत अनाम व्यक्ति नहीं थे बल्कि भारतीय क्रिकेट टीम के एक स्थापित खिलाड़ी बन चुके थे।

“बिजनेस क्लास से सीधे फर्स्ट क्लास! मेरे हेडफोन लगे हुए थे और मैं बस जल्द घर पहुंचना चाहता था”।

उन्हें अपने कम्पार्टमेंट में फैली उत्तेजना का पता तब चला जब सभी उनकी तरफ देख रहे थे और आश्चर्य कर रहे थे कि क्या यह शख़्स सचमुच में वही हैै उनका अपना शार्दुल ठाकुर। कुछ बच्चों ने उनकी तस्वीर गूगल पर डाली और उनके साथ फोटो भी ली।

उन सभी को एक गजब के उल्लास का अनुभव हो रहा था। एक स्थानीय लड़का, उनका बेहद क़रीबी युवा अपने करियर में इतना अच्छा कर रहा है। जिसका सर ऊँचे आसमान की ओर देख रहा है, मगर पाँव अपनी जमीन से जुड़े हैं। मुबंईवासियों ने उन्हें अपने दिल में जगह दी न सिर्फ इसलिए कि उन्होंने अपनी आँखों के सामने इस लड़के को तरक्की करते देखा है बल्कि उसकी विनम्रता और उसकी सहजता के लिए भी। मुंबई में लोग उन्हें ‘पालघर एक्सप्रेस’ कहते हैं।

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