गरीबी, भूख, निरादर और मौत, इन चारों को हराकर इस व्यक्ति ने बनाया कामयाबी का विशाल साम्राज्य

गौरतलब है कि आज से 37 साल पहले चीजें बिल्कुल ही विपरीत थीं। चौदह साल का यह साँवला सा लड़का बैंगलोर के एक स्लम-इलाके में रहता था। उनका परिवार गरीबी से त्रस्त था, कभी-कभी कई दिनों तक उन्हें भूखे ही रहना पड़ता था। अपने परिवार के लिए भोजन जुटाने के लिए नंजुंडई दो दिनों तक स्कूल का भोजन नहीं करते थे। हर तीसरे दिन उन्हें इकट्ठे बारह रोटियां मिल जाती थी जिनसे उनके पूरे परिवार का भोजन हो जाता था।

उनके पिता सुनार थे और वो दिन-रात कड़ी मेहनत किया करते थे, परन्तु आठ बच्चों के भरे-पूरे परिवार को चलाना कतई आसान नहीं था। नंजुंडई जब बारहवीं कक्षा में थे, तब उनके पिता का देहांत लिवर कैंसर से हो गया। उसके बाद माँ समेत पूरे परिवार की जिम्मेदारी नंजुंडई के नाजुक कंधों पर आ गई।

नंजुंडई की सुने तो वे सभी नाले के किनारे रहते थे और मेन रोड ही उनका टॉयलेट होता था। दोस्तों को जैसे पता चला कि वे स्लम में रहते हैं, उन्होंने उनसे मिलना ही छोड़ दिया। आज नंजुंडई की गिनती बैंगलोर के सबसे धनी व्यक्ति में होती है, फिर भी वे हमेशा स्लम घुमने जाया करते हैं। अठारह वर्ष की आयु में नंजुंडई ने अपने परिवार के साथ जीवन का हर कठिन मंजर देखा – गरीबी, भूख, निरादर, और मौत। जिम्मेदारियों के बोझ तले उन्हें कुछ भी सोचने का समय नहीं था। वे सुबह सुनार का काम करते, शाम को कॉलेज जाते, और रात में ऑटोरिक्शा चलाते थे। चौबीस घंटो में केवल ऑटो चलाते वक़्त ही वे झपकी ले पाते थे।

पर फिर भी मेरी इतनी कोशिश पर्याप्त नहीं थी। आखिर में मैंने अपनी शादीशुदा बहन से उनका 15 ग्राम का मंगलसूत्र माँगा जो उनके पति ने उन्हें दिया था। बहन ने भी ख़ुशी-ख़ुशी मंगलसूत्र अपने भाई को दे दिया। नंजुंडई ने सोने के उन छोटे टुकड़ों से कई छोटे-छोटे गहने बनाये। परंतु बदकिस्मती उनके साथ साथ चल रही थी, क्योंकि उस समय सोना बेचना उतना आसान नही था।

मैं सुनारो के पैरों मे गिरकर उनसे अपने आभूषण खरीदने की विनती करता था। कुछ लोग तो यह समझते थे की मैं चोरी किये हुए सोने से आभूषण बनाता हूँ। पर जल्दी ही मैंने उनका विश्वास जीत लिया क्योंकि वे मेरे पिता को जानते थे।

नंजुंडई बड़े चुटीले अंदाज में लोगों द्वारा अपने अस्वीकार किये जाने की कहानी बताते हुए कहते हैं: “स्लम में बढ़ते हुए मैं शरीर से तनदुरुस्त था और आभिजात्य मुझमें कम झलकता था। सड़क छाप से सौम्य दिखने के लिए मैंने जीरो पावर का चश्मा पहनना शुरू कर दिया। कुछ महीनों के संघर्ष के पश्चात हाथ में अच्छे पैसे आने लगे। और उन पैसों से उन्होंने पांच ऑटोरिक्सा व एक कार्गो वैन खरीद लिया। और अपने परिवार के साथ पास ही के किराये के घर में रहने लगे।

हर बीते दिन के साथ उनकी आर्थिक स्थिति सुधरती चली गई और यह वह समय था जब नंजुंडई का फिल्म के प्रति लगाव पैदा हुआ। उसे पता ही नहीं चला कि कब कन्नड़ फिल्मों में पैसा लगाते हुए वह रीजनल आर्ट इंडस्ट्री के दिगज्जों की सूची में शुमार करने लगे। साथ ही फिल्मों में लगे पैसे व वितरण कारोबार से उन्हें अच्छी-खासी रॉयल्टी मिलने लगी। फिर कुछ दिनों बाद सोने में उछाल को देखते हुए वे गोल्ड ट्रेडिंग में भी शामिल हो गए।

झुग्गी-झोपड़ी की गोद में पला-बढ़ा वह लड़का आज दक्षिण भारत स्थित “लक्ष्मी गोल्ड पैलेस” नाम के अनेकों ज्वेलरी शोरूम का स्वामी है। इतना ही नहीं सिल्क साड़ियों के चार मंजिली 5 बड़े शोरूम भी उनके नाम है। इसके साथ ही कर्णाटक में एक मूवी हॉल, मैसूर में पांच सितारा होटल और ऐसी बहुत सारी योजनाएं है जो उनकी भविष्य की योजनाओं में शामिल है।

के. पी. नंजुंडई आज एक ऐसा नाम हैं जो हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। विपरीत परिस्थियों में कुछ लोग स्वयं टूट जाते हैं, तो कुछ लोग रिकॉर्ड तोड़ते हैं। नंजुंडई की शानदार सफ़लता हमें यह प्रेरणा देती है कि विपरीत परिस्थियों का डटकर मुकाबला करने से सफ़लता एक-न-एक दिन जरुर दस्तक देती है।

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