कोलकाता में जन्में रौनक का बचपन स्टील सिटी दुर्गापुर में बीता। स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने बैंगलोर इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज के दिनों में ही रौनक अपना खुद का बिज़नेस करने के लिए प्रेरित हुए। उन्हें इंजीनियरिंग की किताब के एक वाक्य से प्रेरणा मिली जिसमे लिखा था “जब शून्य से नीचे के तापक्रम पर स्टील को क्रायोजेनिक तौर पर ट्रीट किया जाता है तो उसका घिसाई से होने वाला क्षरण कम हो जाता है और उसकी लाइफ दोगुनी तक बढ़ जाती है। हाई स्पीड स्टील के लिए तो यह वृद्धि तिगुनी तक होती है। “
रौनक ने क्रायोजेनिक ट्रीटमेंट के द्वारा काटने के उपकरण के क्षेत्र में अपना बिज़नेस शुरू किया। इसके अंतर्गत मेटल की सब-जीरो प्रोसेसिंग करके उसका हार्डनेस बढ़ाया जाता है। कॉलेज से निकलने के तुरंत बाद उन्होंने उपर्युक्त वाक्य से प्रभावित होकर इस वेंचर की शुरूआत की।
भारत के लिए यह कॉन्सेप्ट बिल्कुल नया था। इस टेक्नोलॉजी का उपयोग केवल आईआईएससी, बैंगलोर की प्रयोगशाला में छोटे स्केल पर किया जाता था। इसे व्यावसायिक स्तर पर करना एक बड़ी चुनौती थी। उन्होंने सोचा कि अगर वे अपने ग्राहकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाले टूल को बेहतर बना सकें तो इससे काफ़ी पैसों की बचत होगी। यह उनके व्यवसाय के लिए बड़ी संभावना हो सकती थी।
24 वर्षीय रौनक ने 2009 में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में अपनी कंपनी सिंटलक्रायोस की स्थापना की और अपने सपनों की उड़ान का आगाज़ किया। परन्तु जल्द ही उन्हें यह अहसास हो गया कि इस नये कॉन्सेप्ट को शुरू करना आसान नहीं है। शुरूआत में क्रायोजेनिक प्रोसेसिंग सेट-अप करना बहुत ही कठिन था और लोगों का इस टेक्नोलॉजी पर भरोसा करा पाना एक बड़ी बाधा थी। इसमें कीमत बहुत ऊंची थी और जोखिम बहुत ज्यादा, और कोई भी सलाहकार इस क्षेत्र में उपलब्ध नहीं था। इतनी समस्या होने के बावजूद उन्होंने आशा का दामन नहीं छोड़ा।
आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर एस के सारंगी की मदद से और अपने बिज़नेसमैन पिता से 5 लाख रूपये की आर्थिक मदद से रौनक ने अपने पहले क्रायो-प्रोसेसिंग यूनिट की शुरूआत की। धीरे-धीरे उन्हें कुछ ग्राहक मिलने लगे। परन्तु समस्या एक के बाद एक दरवाज़ा खटखटाती गई। इन सब से ऊब कर एक समय उन्होंने अपना पारिवारिक बिज़नेस ज्वाइन करने का मन बना लिया। उनका नैतिक बल धीरे-धीरे कम होता चला गया क्योंकि उन्हें लगा कि इंडस्ट्री के लोग शायद नयापन नहीं चाहते। भाग्य ने तब पैंतरा बदला जब उनकी कम्पनी और उनके कॉन्सेप्ट को NDTV प्रॉफिट चैनल के एक शो “आईबीएम प्रेजेंट्स स्मार्टर एंटरप्राइज” में विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया।
इससे उन्हें और उनकी कंपनी को ताकत मिली और क्रायोजेनिक ट्रीटमेंट के क्षेत्र में विश्व की नंबर एक यूएसए कंपनी के साथ टाई-अप करने का मौका मिला। एक नए उत्साह के साथ अब यह बिज़नेस चलने लगा। अब बहुत सी आटोमोटिव कम्पनीज उनके ग्राहक हैं और उनका बिज़नेस दिन-ब-दिन बढ़ने लगा है।
2015 में प्रधानमंत्री के वाइट रेवोलुशन से प्रभावित होकर उन्होंने अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर डेरी का बिज़नेस शुरू किया। उनके दूध के ब्रांड का नाम मस्त मिल्क है और यह पश्चिम बंगाल का सबसे जल्दी बढ़ने वाला डेरी ब्रांड बन गया है। उनके बिज़नेस का टर्न-ओवर 35 करोड़ रूपये तक है।
उनके लिए कठिन परिश्रम का कोई और विकल्प नहीं है और किसी भी इंटरप्रेन्योर के सफल होने के लिए अपने सपनों का साथ बहुत ही महत्वपूर्ण है। कभी हार न मानना और संकट प्रबंधन ही असली हथियार हैं इंटरप्रेन्योर के लिए। उतार चढ़ाव तो हिस्सा है इस इंटरप्रेन्योर यात्रा का। रौनक जमीन से जुड़े रहने और अपने काम पर फोकस करने में विश्वास रखते हैं।
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