उनका जन्म 1918 में तमिलनाडु के वेदमलमपुरम में एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। वे “डॉ वी” नाम से बेहद लोकप्रिय हुए। उन्होंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई चेन्नई के स्टैनले मेडिकल कॉलेज से पूरी की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1945-48 तक भारतीय सेना के मेडिकल दल में बतौर चिकित्सक अपनी सेवाएं दी। उसके बाद एक बीमारी की वजह से नौकरी को अलविदा कहना पड़ा। रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस नामक इस बीमारी ने उन्हें इस कदर कमजोर कर दिया था कि वह एक पेन तक नहीं उठा पाते थे। धीरे-धीरे जब हालत सुधरने लगी तब उन्होंने मदुरई मेडिकल कॉलेज के ऑपथैल्मोलॉजी विभाग में हेड ऑफ़ द डिपार्टमेंट का पद संभाला। एक साल तक इस पद पर काम करने के बाद उन्होंने मदुरई के सरकारी हॉस्पिटल में नेत्र सर्जन का पदभार संभाला। उन्होंने 20 सालों तक यहाँ काम किया।
डॉ वी को जब एक बार हैम्बर्ग के ओक ब्रूक यूनिवर्सिटी जाने का मौका मिला तब वे वहां के मक्डोनल्ड असेंबली लाइन ऑपरेशन स्टाइल से ख़ासे प्रभावित हुए। उन्होंने निश्चय किया कि वे इसी तरह भारत में गरीबों के लिए हॉस्पिटल की श्रृंखला खोलेंगे जहाँ गरीब बहुत ही कम कीमत में अपने नेत्र का उपचार करा सकें, और यहीं से अरविन्द नेत्र हॉस्पिटल की संकल्पना का जन्म हुआ।
“यदि आप उन्हें चुका नहीं सकते तो आप को चुकाने की ज़रुरत नहीं है, यदि आप उन तक नहीं पहुँच सकते, तो वे आप तक पहुंच जायेंगे।”
1976 में ग्यारह बेड के एक हॉस्पिटल की शुरूआत हुई जिसमें से छह बिस्तर उनके लिए आरक्षित थे जो पैसे नहीं दे सकते थे और पांच बिस्तर उनके लिए थे जो मामूली राशि का योगदान कर सकते थे। अरविन्द हॉस्पिटल के काम करने का अपना एक अलग ही तरीका था जहाँ डॉक्टर की सहायता के लिए कुशल इंटर्न चुने जाते थे। जब डॉक्टर एक मरीज का ऑपरेशन कर रहा होता तब इंटर्न डॉक्टर उनसे सर्जरी की बारीकियां सीखता। यह हॉस्पिटल एक दिन में लगभग 100 सर्जरी करता था। बाद में यह मॉडल हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल की केस स्टडी का विषय बना और दुनिया भर के बड़े-बड़े हॉस्पिटलों ने इस पद्धति को अपनाया।
आज तक इस ग्रुप ने लगभग 3.2 करोड़ मरीज़ों का इलाज किया है और 40 लाख सफल सर्जरी की है। इसके अलावा उन्होंने कम कीमत की उच्च गुणवत्ता वाली प्रत्यारोपण लेन्सेस विकसित किये हैं जिसे दुनिया भर के 80 से भी अधिक देशों में निर्यात किया गया है। भारत सरकार की तरफ से 1973 में “डॉ वी” को देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाज़ा गया।
आज हममें से ज्यादातर लोग इस महान हस्ती का नाम तक नहीं जानते लेकिन भारत जैसे देश में जहाँ 2 करोड़ नेत्रहीन लोग हैं और जिनमें से 80% लोग कुशल, प्रभावी और किफायती चिकित्सा सेवा के अभाव के कारण नेत्रहीनता का शिकार हो गए, डॉ वेंकटस्वामी की यह पहल एक वरदान है। हम इस महान शख्सियत की सोच को सलाम करते हैं।
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