इनका जन्म मुंबई के एक चाल में 10 बाई 12 के कमरे में हुआ, जहाँ यह अपने पांच भाई-बहनों के साथ रहते थे। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में मिट्टी के घर में गरीबी के बीच इनका बचपन बीता। वे अपने पहले घर मुंबई को बहुत याद करते हैं। बिना किसी शिक्षा और दिशा-निर्देश के, इन्होंने महसूस किया कि एक चीज़ है जो वे जिंदगी में कर सकते हैं और वह है— सिनेमा।
एक 17 साल का लड़का, अपनी आँखों में सपने लिए और अभिनय को अपना जुनून बना हाथों में सिर्फ 500 रुपये लेकर अपने घर से मुंबई भाग आया। अपने ग़रीब माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए उसने रामलीला में सीता तक का रोल निभाया और वही रवि किशन शुक्ला, आज जीवन की कठिन लड़ाई से जीत कर भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार हैं। जीवन ने उन्हें जो कुछ दिया, उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। उन्होंने 200 से भी अधिक फ़िल्में हिंदी और भोजपुरी भाषाओं में किया और दर्शकों के दिलों-दिमाग में अपना एक अलग प्रभाव छोड़ा।
“लोग मुंबई चल कर आते हैं परन्तु मैं घुटनों के बल चल कर मुंबई पहुंचा हूँ। एक समय था जब मैं बांद्रा में न्यूज़ पेपर बांटा करता था जिसके लिए मुझे महीने के सिर्फ 25 रुपये मिलते थे। साथ ही साथ मैं अपना ग्रेजुएशन पूरा कर रहा था। मैं सिर्फ अपने जीवन में आने वाले सूर्योदय का इंतजार कर रहा था। मैं हमेशा विश्वास करता हूँ कि ईमानदारी से बड़ी विरासत कोई भी नहीं हो सकती।
जब मुझे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में काम नहीं मिल रहा था तब मुझे एक भोजपुरी फिल्म का ऑफर मिला, जिसमें काफ़ी लोग रिजेक्ट हो चुके थे। हमें यह यकीन ही नहीं था कि वह फिल्म बन कर तैयार भी होगी की नहीं; परन्तु इस फिल्म से मेरे करियर की शुरूआत हुई। मैंने हमेशा अपने आप को सफलता के लिए तैयार रखा और इसी से मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिली। मेरी जिंदगी मानो एक जुआ बन गई थी और मैं उसमें बहता चला जा रहा था। परन्तु मैंने कभी अपने सपनों को नहीं छोड़ा। मैं डर गया था कि भोजपुरी फिल्म करने के बाद मुझे बॉलीवुड में मौका मिलेगा कि नहीं। परन्तु मैंने इसके लिए रात-दिन जी तोड़ मेहनत की। और मेरी मेहनत रंग लाई।
हमें यह याद रखना चाहिए कि सफलता मेहनत से मिलती है न कि केवल इच्छा कर लेने से।
मैं हमेशा विश्वास करता हूँ कि काम पूरी ईमानदारी से करना चाहिए और कभी हार नहीं मानना चाहिए। मेरी ईमानदारी ही मेरे काम का सबूत है। इस इंडस्ट्री के शुरूआती दिनों के संघर्षों में मैंने अपनी सीमाओं को स्वीकार किया है और अपनी काबिलियत पर हमेशा भरोसा किया। साधारणतया लोग जीवन की परीक्षा की घड़ी में डटे नहीं रह पाते और इसी वजह से देखने को मिलता है कि कुछ लोग जो बड़े उत्साह और सपनों के साथ मुंबई आते हैं, जीवन के संघर्षों के आगे अपने घुटने टेक देते हैं।
बंबई पहले परीक्षा लेता है, फिर समीक्षा करता है और अंत में जीत थमा देता है।
चाहे वड़ा पाव खाकर जीवन गुजारना पड़े या फुटपाथ पर सोना पड़े परन्तु हार नहीं मानना चाहिए। अगर आप अपनी क़ाबिलियत को पहचानते हैं, तो जीवन के संघर्षों से लड़े और दृढ़ बने रहें। अपने सपनों को फलने-फूलने दें और जीवन की चुनौतियों का सामना करें। याद रखें मजबूत इरादे ही मजबूत काम को अंजाम देते हैं।
अंत में हमेशा की तरह मैं यह कहना चाहूँगा कि ज़िन्दगी झंड बा, फिर भी घमंड बा। कभी भी किसी व्यक्ति या चीज़ के लिए अपना आत्म-सम्मान न खोएं। यह एक ऐसी चीज़ है जो आपको अंततः सम्मान का पात्र बना देगा और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
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