दिनेश, मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के नानपारा के निवासी हैं। उन्होंने हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट, कानपूर से कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में बीटेक किया। उसके बाद उन्होंने बहुत सी बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम किया। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत CMC लिमिटेड में सेंट्रलाइज्ड रेलवे रिजर्वेशन सिस्टम प्रोजेक्ट पर काम करते हुए किया। उसके बाद उन्होंने C-Dot (सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ़ टेलीमैटिक्स ) ज्वाइन किया।
पांच साल तक इन कंपनियों में काम करने के बाद वे अमेरिका चले गए और वहां पर उन्होंने HCL टेक्नोलॉजीज़ में काम करना शुरू किया। वहां की तनख्वाह, लाइफ के ऐशोआराम और काम सभी कुछ अच्छा होते हुए भी दिनेश को कुछ कमी सी लग रही थी। उनके दिमाग में बस एक ही बात आ रही थी कि वे सारा जीवन वही काम करके नहीं बिता सकेंगे। उन्हें एक ही तरह का उबाऊ और एक-रस जीवन नहीं गुजारना था। वे कुछ नया करना चाहते थे और इसके लिए नए अवसर तलाश रहे थे। वे खुद का बिज़नेस शुरू करना चाहते थे। इसी सोच के साथ साल 1996 में वे भारत लौट आये।
कम्प्यूटर एनालिस्ट होने की वजह से सॉफ्टवेयर में उनकी अच्छी पकड़ थी और वे एकदम शुरूआती दौर के इंटरनेट यूज़र थे। और इसलिए उन्होंने सॉफ्टवेयर सर्विसेज़ में कुछ शुरू करने का मन बनाया। वे छोटे और मझोले एंटरप्राइजेज (SMEs) के लिए एक ऐसा प्लेटफार्म बनाने की सोच रहे थे कि जिससे वे अपने उत्पाद की सारी जानकारी वेब-पेजेज़ में डिस्प्ले कर सकें। एक ऐसा प्लेटफार्म बनाया जाय जहाँ पर SMEs अपने उत्पादों की मार्केटिंग भी कर सकते हैं। उन्होंने अपने इस बिज़नेस का नाम दिया इंडिया मार्ट।
दिनेश अपनी बचत के 40,000 रुपये को अपनी कंपनी में इन्वेस्ट किया। किसी बिज़नेस की शुरूआत आसान नहीं होती और इनके साथ भी यही हुआ। इस बिज़नेस में काम करने के लिए कम्प्यूटर बेहद जरुरी था। और उस समय कंप्यूटर काफ़ी महंगे होते थे और बहुत कम बिज़नेस में इसका उपयोग किया जाता था। दिनेश और उनकी टीम के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण काम था प्रमोशन हेतु अपने ग्राहकों को कंप्यूटर खरीदने के लिए राजी करना।
इसके अलावा बिज़नेस के लिए इंटरनेट कनेक्शंस लेना भी एक रूकावट थी। उन्हें अपना पहला क्लाइंट एक फ़ास्ट फ़ूड चेन निरुलास के रूप में मिला था। उस समय छोटे-छोटे फाइल की उपलोडिंग और डाउनलोडिंग करने में बहुत टाइम लगता था। उन्होंने एक डील की जिसमें वे सालाना 32,000 रुपये में उनकी वेबसाइट को विकसित और मैनेज करेंगे।
उन्होंनें ऐसे कर्मचारियों को चुना जो इनोवेटिव तरीके से मार्केटिंग करें। उन्होनें इंडिया मार्ट के प्रचार के लिए नई दिल्ली के प्रगति मैदान में प्रदर्शनी लगाई जिसमें उनके स्टाफ के लोग टी शर्ट पहन कर अपने ब्रांड का प्रचार कर रहे थे। इण्डिया मार्ट के वेब-पेज पर जैसे ही किसी क्लाइंट का प्रोफाइल डाला जाता, पूरे विश्व से उस क्लाइंट के उत्पाद के लिए बिज़नेस एन्क्वाइरीज़ मिलना शुरू हो जाता था।
बहुत सी कंपनियों ने वेब पर अपनी उपस्थिति के महत्त्व को समझना शुरू कर दिया था जिससे उन्हें तो फायदा मिला ही, साथ ही साथ इंडिया मार्ट को भी फायदा पहुंचा। इसके द्वारा पहले साल के अंत तक इस फर्म का टर्न-ओवर 6 लाख रूपये तक पहुंच गया। उस समय कंपनी में सिर्फ नौ कर्मचारी थे।
बिज़नेस के बढ़ने के साथ-साथ बड़ी जगह की ज़रूरत थी। 1996 से 1999 तक उन्होंने चार ऑफिस बदले। नए कर्मचारी रखने में खर्च ज्यादा था, लगभग 50,000 रुपये का, क्योंकि हर नए एम्प्लाई के लिए एक कम्प्यूटर और उसकी एक्सेसरीज भी खरीदने होते थे। कुछ बिज़नेस को जानकारी ई-मेल के जरिये दे दी जाती थी पर कुछ बिज़नेस के लिए जानकारियां प्रिंटआउट निकाल कर और फैक्स के माध्यम से भी ग्राहकों तक भेजा जाता था। इस सभी वजहों से भी खर्च बढ़ रहा था।
इंडिया मार्ट का दूसरा ऑफिस 1998 में मुंबई में स्थापित किया गया। 1999 तक इंडिया मार्ट के 1,000 क्लाइंट्स और 100 स्टाफ सदस्य हो गए थे। उनके स्टाफ का उनके बिज़नेस को बढ़ाने में बड़ी भूमिका है। 11 सितंबर 2001 को जब यूनाइटेड स्टेट में आंतकी हमला हुआ था तब इनका बिज़नेस 40% तक गिर गया था। आज देश के 20 शहरों में इंडिया मार्ट के 50 ऑफिसेस और 2500 स्टाफ मेंबर्स हैं। उनके हेड ऑफिस नॉएडा में ही 800 कर्मचारी हैं। 2007 में इंडिया मार्ट ने अपने नए ऑफिस के लिए नॉएडा में लगभग दो एकड़ का प्लाट लिया है जिसकी कीमत सात करोड़ रूपये है।
कंपनी साल दर साल 30% दर से वृद्धि कर रही है। ताज़े आकड़ों के अनुसार 2013-14 में इंडिया मार्ट कंपनी का टर्न-ओवर 300 करोड़ रुपये के लगभग था। दिनेश अग्रवाल की मेहनत और नए नए प्रयोग के चलते बिज़नेस के क्षेत्र में उन्होंने एक नया मक़ाम हासिल किया है।
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