आज जहाँ किसान खेती से मुँह फेरते नज़र आ रहे हैं, शायद ही कोई किसान है जो अपने बेटे को भी किसान बनाना चाहता है। हर रोज़ सुनने को मिलता है इस राज्य में किसान नें आत्महत्या कर ली या कोई किसान क़र्ज़ में डूबा हुआ है। कभी सूखे की मार तो कभी बाढ़ से फ़सल बर्बाद। ये सब सुन कर दुःख तो बहुत होता है पर कोई इसके लिए कभी ठोस कदम नहीं उठाता। कहीं ना कहीं हम दोष बस एक दूसरे से सिर मढ़ते रहते हैं। आज हमारे सामने ऐसे कितने देशों के उदाहरण हैं जहाँ के किसान खेती से बहुत ही खुशहाली और सुखमय जीवन जीते हैं। हमारे देश में ही पंजाब और हरियाणा एक उदाहरण हैं जहाँ के किसान एक अच्छी स्थिति में हैं।
लेकिन आज की युवा पीढ़ी खेती से मुँह मोड़ चुकी है और नौकरी करने को ही अपना मकसद बना रही है। वही एक लड़की ऐसी भी है जिसने खेती के लिए अपनी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी को छोड़ दिया और आज अपने गाँव में खेती से लाखों की कमाई कर रही है।
जी हाँ, इस लड़की का नाम है वल्लरी चंद्राकर। वल्लरी रायपुर से करीब 88 किमी दूर मुहंसमूंद के बागबाहरा के सिर्री पठारीमुड़ा गांव की रहने वाली हैं। 27 साल की वल्लरी चंद्राकर नें कंप्यूटर साइंस में एम.टेक किया है। वल्लरी ने अपनी इंजीनियरिंग की पढाई साल 2012 में पूरी कर बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर अपने करियर की शुरुआत की। वल्लरी एक बार छुट्टियों में अपने घर आयी, तब उन्होंने पाया कि लोग आज भी पुराने तरीके से ही खेती किये जा रहे हैं, जिससे उन्हें काफी कम मुनाफा होता है। तकनीकी क्रांति से किसान भाइयों को अछूता देख वल्लरी ने नौकरी छोड़ खेती की कमान पकड़ने का फैसला किया।
साल 2016 में उन्होंने 15 एकड़ जमीन से खेती की शुरुआत की। उनके पिता ने कुछ जमीन फार्म हाउस बनाने के लिए खरीद रखी थी। वल्लरी को वह खेती करने के लिए ठीक लगी और उन्होंने उस जमीन पर सब्जियां लगाना शुरू कर दिया। उनके गांव में टमाटर, सेम, खीरा, करेला, लौकी, मिर्च, बींस, शिमला मिर्च की खेती की जाती है। उन्हें अब अलग-अलग राज़्यों से ऑर्डर्स मिलते रहते हैं, उसी हिसाब से वे सब्ज़ियाँ सप्लाई करती हैं। उनके खेतों में लगाई सब्जियां दिल्ली, भोपाल, इंदौर, ओडिशा, नागपुर, बेंगलुरु तक जाती है। सब्जियों की क्वालिटी अच्छी होने के कारण इन्हें दुबई और इजरायल तक एक्सपोर्ट करने की तैयारी है।
वल्लरी ने जब नौकरी छोड़ खेती करने का फैसला लिया था तो लोगों ने उन्हें पढ़ी-लिखी बेवकूफ कहा था। वे कहती हैं कि उनके घर में तीन पीढ़ी से किसी ने खेती नहीं की थी। किसान, बाजार और मंडीवालों के साथ डील करना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता था। पापा ने ये जमीन फार्म हाउस बनाने के इरादे से खरीदी थी। मुझे यहां खेती में फायदा नजर आया तो नौकरी छोड़कर आ गई। शुरुआत में बहुत मुश्किल हुई। लोग लड़की समझकर मेरी बात को सीरियसली नहीं लेते थे। खेत में काम करने वाले लोगों के साथ बेहतर कम्युनिकेशन हो सके, इसलिए छत्तीसगढ़ी सीखी। साथ ही खेती की नई टेक्नोलॉजी इंटरनेट से सीखी। देखा कि इजरायल, दुबई और थाईलैंड जैसे देशों में किस तरह से खेती की जाती है। पैदा हुई सब्जियों की अच्छी क्वालिटी देखकर धीरे-धीरे खरीदार भी मिलने लगे।
आज वल्लरी की टीम में 7 युवा सदस्य हैं, और ये सभी इंजीनियरिंग या मार्केटिंग फील्ड के हैं। इन सभी की वल्लरी के आइडिया को करने आगे बढ़ने में अहम भूमिका रहती है। इसके अलावा वे गाँव के अन्य लोगों को भी रोज़गार प्रदान करती हैं, जिससे उनके साथ-साथ गाँव का भी विकास हो रहा है।
आस-पास के अन्य किसान भी उनसे बहुत प्रभावित हुए हैं। वल्लरी अपने खाली समय में गांव के बच्चों को मुफ़्त में कंप्यूटर की शिक्षा व अंग्रेजी का ज्ञान भी देती हैं। वह अपने इंजीनियरिंग के अनुभवों को बच्चों के साथ साझा करती हैं, ताकि उनमें कौशल विकास भी किया जा सके। इतना तो नहीं हर दिन शाम में दो घंटे लड़कियों के लिए अंग्रेजी और कंप्यूटर की क्लासेज भी चलाती हैं।
वल्लरी अब इज़रायल जाकर वहां की आधुनिक खेती के तकनीकों को सीखना चाहती हैं। गौरतलब है कि आधुनिक खेती के मामले में इज़रायल अव्वल नंबर पर आता है और वल्लरी की चाहत है की वहाँ जाकर वे उनके तौर-तरीकों को जानें-सीखें और वापस अपनें देश आकर उसका कार्यान्वयन करें।
यकीनन वल्लरी नें न सिर्फ किसानों को प्रेरित करने का काम किया बल्कि लोगों के सामने एक मिसाल कायम की है कि एक लड़की भी खेती कर सकती है और लाखों का मुनाफ़ा कमा सकती है। बस जरूरत हैं तो दृढ़ हौसले की और खेती के सही तरीके की।
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